प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार मंगलेश डबराल का निधन
प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार मंगलेश डबराल का निधन
दिल्ली। साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हिंदी के प्रख्यात लेखक, कवि और पत्रकार मंगलेश डबराल का निधन हो गया है। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत की बहुत बड़ी क्षति हुई है।
श्री डबराल को कोरोना संक्रमण हो गया था, उनका इलाज पहले गाजियाबाद के एक निजी अस्पताल में चल रहा था, बाद में उन्हें एम्स दिल्ली शिफ्ट किया गया था। लेकिन अब उनकी मौत की खबर आई है। हिंदी साहित्य जगत और उत्तराखंड के लिए यह एक बहुत बड़ी क्षति है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हिंदी भाषा के प्रख्यात लेखक, कवि और पत्रकार श्री मंगलेश डबराल के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने श्री मंगलेश डबराल के निधन को हिन्दी साहित्य को एक बङी क्षति बताते हुये दिवंगत आत्मा की शांति व शोक संतप्त परिवार जनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने भी पोस्ट किया कि
" साहित्य अकादमी से पुरस्कृत, पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन जैसी कृतियों के रचयिता, हिंदी के महत्वपूर्ण कवि एवं साहित्यिक पत्रकार श्री मंगलेश डबराल जी के आकस्मिक निधन से बेहद दुःखी हूं।
हिंदी के प्रख्यात लेखक, कवि मंगलेश जी के निधन से साहित्यिक जगत को अपूरणीय क्षति हुई है व्यक्तिगत तौर पर मुझे भी बड़ी क्षति हुई है ।
मंगलेश जी देवभूमि के पहाड़ों से उतर कर दिल्ली के मैदान में भले ही आ गए थे लेकिन उनकी आत्मा पहाड़ में ही बसती थी। दुःख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं शोकाकुल परिवार एवं प्रियजनों के साथ हैं। मैं ईश्वर से पुण्य आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूं। ऊं शांति-शांति"
पहाड़ का पुत्र प्रसिद्ध साहित्यकार, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित , टिहरी जिले के काफ्लपानी गाँव मे जन्मे स्वर्गीय श्री मंगलेश डबराल जी के निधन पर श्रद्धांजली स्वरूप उनकी कविता पहाड़ पर लालटेन का एक अंश
रविन्द्र जोशी
श्री जगदीश सिंह नेगी जी की कलम से
श्रद्धापूर्वक स्व: श्री मंगलेश डबराल जी को 🙏श्रद्धा सुमन अर्पित 🙏करते हुये मुझे बरवस याद आया जब मैं नागराजा धार ( कापलपानी, पटटी जुआ, जौंलगी, टि. ग.) स्कूल मे 8वी कक्षा में पढ़ता था उस वक्त अंग्रेजी का एक पाठ "पठकी चक्रवर्ती" नामक हुवा करता था जिसे डबराल जी बहुत ही सहज भाषा मे रुक रुक कर (थितयाते थे) समझाते थे और सब बच्चे खूब हँसते थे हालाँकि वे वहाँ पर अध्यापक नही थे चूँकि उन्हें अंग्रेजी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान था इसलिये कभी कभार पढ़ाने स्कूल में आ जाया करते थे, दिल्ली मे कई बार शादी व अन्य सामाजिक समारोह मे उनसे मुलाकात होती रहती थी उनके साथ बिताये अमूल्य क्षण हमेशा अमूल्य धरोहर की तरह सँजोये रखूँगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शाँति प्रदान करें।
संजय मल्ल
गोर्खा इंटरनेशनल
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