क्यो बहुत महत्वपूर्ण है बसंत पंचमी खासकर विद्यार्थियों के लिए , कैसे करे पूजा ? सिविल सर्विसेज एग्जाम कैसे पास करे ,आज कहा दी जा रही है जानकारी ?
विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है बसंत पंचमी : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के अनुसार माघ माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी या मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 16 फरवरी 2021 दिन मंगलवार को पड़ रहा है। इस दिन मां सरस्वती का प्राकट्य होने के कारण उनकी पूजा का विधान है। इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरूआत होती है। यह दिन विद्यार्थियों, लेखन से जुड़े लोगों और संगीत से जुड़े लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन जो व्यक्ति मां सरस्वती की पूजा सच्चे हृदय और विधि-विधान करता है उसे विद्या और बुद्धि का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा अर्चना के समय कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
बसंत पंचमी के दिन क्या करें।
बसंत पंचमी के दिन सुबह उठकर स्नानादि करने के पश्चात पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
मां सरस्वती का ध्यान और पूजन वंदन करें।
शिक्षा सामाग्री कापी, किताब, कागज, कलम आदि की पूजा करें।
यदि आपके पास कोई वाद्य यंत्र है तो उसकी भी पूजा करनी चाहिए।
अपने माता-पिता बड़ों और गुरूजनों का पैर छूकर आशीर्वाद लें।
बसंत पंचमी के दिन वस्त्र और भोजन का दान शुभ माना जाता है।
इस दिन पितृ तर्पण भी किया जाता है।
कोई नया शुभ कार्य करने के लिए बसंत पंचमी का दिन बहुत शुभ रहता है।
बसंत पंचमी तिथि समय
पंचमी तिथि आरंभ- 16 फरवरी दिन मंगलवार प्रातः 03 बजकर 36 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्त- 17 फरवरी दिन बुधवार प्रातः 5 बजकर 46 मिनट तक
बसंत पंचमी पर क्या न करें।
बसंत पंचमी के दिन किसी को अपशब्द न बोलें
इस दिन वाद-विवाद से दूर रहें क्रोध पर नियंत्रण रखें।
बसंत पंचमी के दिन मांस-मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें।
इस दिन प्रणय संबंध नहीं बनाने चाहिए।
बसंत पंचमी के दिन बिना स्नान किए भोजन न करें।
बसंत पंचमी प्रकृति से जुड़ा त्योहार है, इस दिन पेड़-पौधे नहीं काटने चाहिए।
बसंत पंचमी शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और पौराणिक कथा :-
बसंत पंचमी 2021 शुभ मुहूर्त
बसंत पंचमी आरंभ- 16 फरवरी 2021 दिन मंगलवार सुबह 03 बजकर 36 मिनट से
बसंत पंचमी समाप्त- 17 फरवरी 2021 दिन बुधवार को सुबह 5 बजकर 46 मिनट पर
16 फरवरी को पूरे दिन पंचमी तिथि रहेगी। यह बेहद ही शुभ है।
बसंत पंचमी का महत्व
माघ माह की पंचमी तिथि को बसंत ऋतु के आगमन और मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस समय गेहूं की फसल पूरी तरह पककर तैयार हो जाती है, जो देखने में स्वर्ण की तरह चमकती है। खेतों में सरसों के पीले फूल खिले होते हैं जो बसंत ऋतु के आने का संदेश देते हैं, इसलिए यह तिथि कृषि के लिए भी बहुत महत्व देती है। इसके अलावा सृष्टि को स्वर देने वाली ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म दिवस होने के कारण यह दिन विद्यार्थियों और संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए भी बहुत महत्व रखता है। विद्यार्थियों को इस दिन मां सरस्वती (शारदा) की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
पूजा विधि
इस सुबह स्नानदि करने के बाद स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान की साफ-सफाई करने के बाद मां सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, अक्षत, पीले या सफेद रंग के पुष्प से पूजन करें। मां सरस्वती को पीली मिठाई अर्पित करें।
इस दिन शिक्षा सामाग्री किताबों आदि की पूजा भी करनी चाहिए।
जो लोग संगीत से जुड़े हैं वाद्य यंत्रों का पूजन करना चाहिए।
पूजा के बाद मां सरस्वती की वंदना करें।
बसंत पंचमी कथा :-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की तो पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं सब कुछ बहुत ही सुंदर दिख रहा था, लेकिन फिर भी उन सब में कुछ कमी सी महसूस हो रही थी। जिसके बाद ब्रह्मा जी ने इस कमी को पूरा करने के लिए अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो उससे एक सुंदर देवी प्रकट हुईं। इनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। देवी ने जब वीणा बजाया तो संसार की हर चीज में स्वर आ गया। जिसके बाद उनका नाम पड़ा देवी सरस्वती। कथा के अनुसार यह दिन बसंत पंचमी का दिन था। इसलिए बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का पूजन किया जाता है।
*माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है वसंत पंचमी पर्व*
विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की होगी वसंत पंचमी पर्व पर पूजा
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की 16 फरवरी को बसंत पंचमी पर्व मनाया जायेगा। बसंत के मौसम की शुरुआत बसंत पंचमी के त्यौहार के साथ होती है। इस मौके पर ज्ञान की देवी कही जाने वाली माता सरस्वती की पूजा होती है। बसंत पंचमी का पर्व विद्यालयों और हिन्दू परिवारों में सरस्वती मां के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष सभी लोग इस पर्व को बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। और पंचांग के अनुसार यह बहुत ही शुभ दिन होता है। इस दौरान विशेष पूजा पंडालों का भी आयोजन किया जाता है। और वहां पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है। क्योंकि मां सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी माना जाता है। यह पर्व अब समस्त विश्व में हिन्दू त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा है। इसके साथ ही यह पर्व भारत में भी बहुत लोकप्रिय हो गया है।
बसंत पंचमी के साथ भारत में वसंत का मौसम शुरू होता है और सरसों के फूल खिलते हैं। इस त्यौहार के साथ पीला जुड़ा हुआ है, और सरसों के खेतों में खिले फूल भी इसे एक खास पहचान देते हैं। बसंत पंचमी के मौके पर मां सरस्वती की पूजा होती है और उन्हें भी पीला वस्त्र चढ़ाया जाता है। बसंत पंचमी को हिंदू महीने माघ के उज्ज्वल पखवाड़े (शुक्ल पक्ष) के पांचवें दिन (पंचमी तिथि) को मनाया जाता है। इस दिन से, वसंत ऋतु (वसंत का मौसम) भारत में शुरू होती है। इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है। उत्सव तब होता है जब पंचमी तिथि दिन के पहले पहर यानी सूर्योदय और मध्याह्न के बीच दिन का समय होता है। यदि पंचमी तिथि मध्याह्न के बाद शुरू होती है और अगले दिन की पहली छमाही में प्रबल होती है तो वसंत पंचमी दूसरे दिन मनाई जाती है। उत्सव केवल अगले दिन एक स्थिति में स्थानांतरित किया जा सकता है अर्थात् यदि पंचमी तिथि किसी भी समय पहले दिन की पहली छमाही में प्रचलित नहीं होती है। अन्यथा, अन्य सभी मामलों में, उत्सव पहले दिन होगा। इसीलिए, कभी-कभी, बसंत पंचमी भी पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि पर आती है।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के अनुसार सूर्योदय कालीन पंचमी का संयोग सरस्वती पूजन, वाग्दान, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों व अन्य शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ दिन वसंत पंचमी है। वसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त वाले पर्वों की श्रेणी में शामिल है। देवी पूजन की सभी तिथियां व पूजन आदि के मुहूर्त की तिथियां हमेशा सूर्योदय कालीन ग्रहण करने का ही विधान है। प्रात:कालीन की गई पूजा सदैव ही सिद्ध व शुद्ध होती है। होलिका दहन से पहले होली बनाने की प्रक्रिया चालीस दिन पहले ही वसंत पंचमी के दिन शुरू हो जाती है। इस दिन गूलर वृक्ष की टहनी को गांव या मोहल्ले में या जिस जगह पर होली का दहन किया जाना होता है या किसी खुली जगह पर गाड़ दिया जाता है। इसे होली का ठुंडा गाड़ना भी कहते हैं। बसंत-पंचमी के दिन से ही होली की शुरुआत व निश्चित दहन स्थान में होली का ठुंडा गाढ़ने की भी परम्परा रही है। वसंत पंचमी का नाम सुनते ही हर कोई उत्साह और उमंग से भर जाता है। पतंगों के बिना यह पर्व अधूरा लगता है।
बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। आज ही के दिन से भारत में वसंत ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है। बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है। यदि पंचमी तिथि दिन के मध्य के बाद शुरू हो रही है तो ऐसी स्थिति में वसंत पंचमी की पूजा अगले दिन की जाएगी। हालाँकि यह पूजा अगले दिन उसी स्थिति में होगी जब तिथि का प्रारंभ पहले दिन के मध्य से पहले नहीं हो रहा हो; यानि कि पंचमी तिथि पूर्वाह्नव्यापिनी न हो। बाक़ी सभी परिस्थितियों में पूजा पहले दिन ही होगी। इसी वजह से कभी-कभी पंचांग के अनुसार बसन्त पंचमी चतुर्थी तिथि को भी पड़ जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन देवी रति और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने का भी विधान है।
सरस्वती पूजा : आज के दिन ऊपर दिए गए मुहूर्त के अनुसार साहित्य, शिक्षा, कला इत्यादि के क्षेत्र से जुड़े लोग विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। देवी सरस्वती की पूजा के साथ यदि सरस्वती स्त्रोत भी पढ़ा जाए तो अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं और देवी प्रसन्न होती हैं।
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श्री पंचमी : आज के दिन धन की देवी ‘लक्ष्मी’ (जिन्हें श्री भी कहा गया है) और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। कुछ लोग देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की पूजा एक साथ ही करते हैं। सामान्यतः क़ारोबारी या व्यवसायी वर्ग के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी की पूजा के साथ श्री सू्क्त का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना गया है।
पंचमी तिथि उसी दिन मानी जाएगी जब वह पूर्वाह्नव्यापिनी होगी; यानि कि सूर्योदय और दिन के मध्य भाग के बीच में प्रारंभ होगी।
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। भक्त उनके मंदिरों में जाते हैं और सरस्वती वंदना करते हैं और संगीत बजाते हैं। देवी सरस्वती रचनात्मक ऊर्जा प्रकट करती हैं और ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं उन्हें ज्ञान और रचनात्मकता का आशीर्वाद मिलता है।
यह भी माना जाता है कि पीला सरस्वती मां का पसंदीदा रंग है, इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन और मिठाइयां तैयार करते हैं। वसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावल पारंपरिक दावत होती है। वसंत पंचमी के दिन, हिंदू लोग मां सरस्वती चालीसा पढ़ते हैं ताकि उनका भविष्य अच्छा हो सके। कई क्षेत्रों में, सरस्वती मंदिरों को एक रात पहले भोज से भर दिया जाता है ताकि देवी अगली सुबह अपने भक्तों के साथ उत्सव और जश्म में शामिल हो सकें। जैसा कि यह ज्ञान की देवी को समर्पित दिन है, कुछ माता-पिता अपने बच्चों के साथ बैठते हैं, उन्हें अध्ययन करने या अपना पहला शब्द लिखने और सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए एक बिंदु बनाते हैं। इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को अक्षराभ्यासम या विद्यारम्भम कहा जाता है। कई शिक्षण संस्थानों में, देवी सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग में सजाया जाता है और फिर सरस्वती पूजा की जाती है, जहाँ शिक्षकों और छात्रों द्वारा सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। कई स्कूलों में इस दिन बसंत पंचमी पर गीत और कविताएँ गाई और सुनाई जाती हैं।
16 फरवरी बसंत पंचमी 2021 का मुहूर्त
पूजा मुहूर्त :06:59:11 से 12:35:28 तक
अवधि :5 घंटे 36 मिनट
उल्लास से मनायी जाती है श्रीपंचमी
देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू का त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
सिखों के लिए में बसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था।
वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा सम्बन्ध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।
कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसन्त पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अतः पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे । अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा। फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते - देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए। सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।
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