विश्व में हिन्दी पहले स्थान पर कैसे ?इतनी वैज्ञानिक दुनिया की कोई भाषा नही है।
आप सभी हिन्दी प्रेमियों से अनुरोध है कि हिन्दी दिवस के अवसर पर इस तथ्य का अधिकाधिक प्रचार करने कि कृपा करें । आप सभी के सहयोग से हिन्दी को वह स्थान मिलेगा जिसकी वह हकदार है ।
विश्व में हिन्दी पहले स्थान पर कैसे ?
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल
महा निदेशक , वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान
मनोजय भवन, 115, विष्णुलोक कॉलोनी
तपोवन रोड , देहरादून, उत्तराखंड , 248008, भारत
पृष्ठभूमि : मोबाइल 9900068722 Email: dr.nautiyaljp@gmail.com
मैंने अपनी शोध में यह सिद्ध किया था कि कि विश्व में हिन्दी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है , इस पर विश्व के अधिकांश विद्वानों ने इस शोध का समर्थन किया है । मुझे कुछ प्रख्यात विद्वानों ने सुझाव दिया कि इस विषय पर एक लेख ऐसा होना चाहिए जिसमे आसान शब्दों में जन सामान्य को भी इसकी जानकारी मिल सके । यह शोध बहुत ही महत्वपूर्ण है , इसका प्रचार प्रसार होना चाहिए और यह तथ्य जन जन तक पहुँचना चाहिए । उनके सुझाव पर मैं अपने 40 वर्ष के शोध को बहुत ही संक्षेप में और बहुत ही आसान भाषा में यहाँ दे रहा हूँ ।
विश्व में भाषाओं कि रैंकिंग कैसे होती है :
विश्व में भाषाओं कि रैंकिंग “एथ्नोलोग” नाम की संस्था करती है । इसका मुख्यालय अमेरिका में है । यह संस्था , विश्व की भाषाओं के आकडे अपने प्रतिनिधियों / प्रतिनिधि संस्थाओं से एकत्र करती है । यह एक गैर सरकारी संस्था है । संसार की सभी भाषाओं का डेटाबेस इनके पास है । यह हर वर्ष भाषाओं के आंकड़े जारी करती है । जिसके बोलने वाले संसार में सबसे अधिक होते हैं वह भाषा पहले नंबर पर आती है । अर्थात संख्या बल के हिसाब से ही रैंकिंग जारी की जाती है । भाषा के जानकारों की संख्या को स्थूल रूप में दो वर्गों में रखा जाता है इन्हें एल-1 और एल-2 कहा जाता है । एल-1 के अंतर्गत वे भाषाभाषी आते हैं जिनकी यह मातृ भाषा हो अथवा जिन्हें इस भाषा पर दक्षता हासिल हो । भाषाओं की रैंकिंग में एल-2 में वे भाषा भाषी आते हैं जिनकी वह भाषा अर्जित भाषा हो । उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा के लिए एल-1 के अंतर्गत हिन्दी भाषी प्रदेशों की जनसंख्या और जिन्हें हिन्दी मे दक्षता प्राप्त हो उनकी गणना होगी तथा अन्य जिसने भी काम चलाऊ हिन्दी सीखी हो या हिन्दी जानता हो उनकी गिनती एल-2 मे होगी ।
हिन्दी का विश्व में कौन सा स्थान है ?
मेरी शोध के अनुसार हिन्दी का विश्व में पहला स्थान है लेकिन एथ्नोलोग इसे तीसरे स्थान पर दिखाता है ।
विश्व मे भाषा संबंधी आंकड़े परिचालित करने वाली संस्था एथनोलोग ने अपनी 2021 की रिपोर्ट मे अँग्रेजी को प्रथम माना है, तथा इनके बोलने वालों की संख्या (1348 मिलियन) अर्थात 1 अरब चौंतीस करोड़ 8 लाख दर्शाई है तथा मंदारिन को दूसरे स्थान पर रखा है । इसके बोलनेवालों की संख्या (1120 मिलियन ) अर्थात 1 अरब 12 करोड़ बताई है तथा हिन्दी को तीसरे स्थान पर रखा है और इसके बोलनेवालों की संख्या सिर्फ ( 600 मिलियन ) अर्थात 60 करोड़ दर्शाई गई है , जबकि सत्य यह है कि विश्व मे हिन्दी बोलने वाले ( 1356 मिलियन ) अर्थात 1 अरब 35 करोड़ 60 लाख हैं । हिन्दी जाननेवाले , अँग्रेजी जानने वालों से 1 करोड़ 52 लाख अधिक हैं ।
अतः हिन्दी विश्व मे सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है , विश्व भाषाओं की रैंकिंग में पहले स्थान पर है । यह तथ्य वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान द्वारा जारी भाषा शोध रिपोर्ट 2021 के अंतिम परिणाम से सिद्ध हो चुका है । अतः हिन्दी निर्विवाद रूप से पहले स्थान पर है । इसे पहले स्थान पर ही दर्शाया जाना चाहिए ।
हिन्दी को तीसरे स्थान पर क्यों दर्शाया जाता है :
हिन्दी को तीसरे स्थान पर दर्शाये जाने के दो कारण हैं , पहला यह कि एथ्नोलोग को हिन्दी मे कोई रुचि नहीं है इसलिए हिन्दी से संबन्धित एक दशक पुराना जनगणना का सरकारी आंकड़ा जिस भी स्रोत से उनके हाथ लगा उन्होने वह ही लिख दिया । किसी भी भारतीय विद्वान ने इस पर आपत्ति नहीं की और न ही भारत की किसी भी संस्था ने एथ्नोलोग को आंकड़े में संशोधन करने को कहा । इसलिए दूसरी भाषाओं को बोलने वालों ने अपनी भाषा के नवीनतम आंकड़े दिये और हमने अपने 11 साल पुराने आंकड़ों को ही स्वीकार कर लिया ।
इस गलत गणना का दूसरा कारण यह है कि दूसरी भाषाओं मे भाषा भाषियों की गणना में थोड़ा सा भी अक्षर ज्ञान होने पर उसे भाषा के जानकारों में गिन लिया जाता है , लेकिन हिन्दी के लिए जान बूझ कर मापदंड अलग ही बना दिया गया है । जिनकी मातृभाषा हिन्दी है सिर्फ उनकी की ही गणना हिन्दी भाषा के जानकारों में की गई । यह भारत की गरिमा को गिरने के लिए सोची समझी चाल है । इसे उदाहरण से इस प्रकार समझ सकते हैं । पहला उदाहरण अँग्रेजी का ही लें । भारत में अँग्रेजी जानने वाले सिर्फ 6 प्रतिशत हैं अर्थात आठ करोड़ चालीस लाख हैं, लेकिन इसे कहीं कहीं 10 प्रतिशत दिखाया जाता है अर्थात 14 करोड़ । कई जगह तो यह संख्या 20 प्रतिशत दिखाई जाती है अर्थात 28 करोड़ । जबकि सच्चाई यह है भारत मे अँग्रेजी के जानकार 8 करोड़ से थोड़ा अधिक हैं ।
इसी प्रकार मंदारिन भाषा को ही लें । चीन में 70 अन्य बोलियाँ है । ये एक दूसरे से बिलकुल नहीं मिलती हैं , अर्थात ये आपस में बोधगम्य नहीं हैं । मंदारिन जानने वालों में इन बोलियों को बोलने वालों को भी काफी बड़ी मात्र में शामिल कर लिया गया है , वस्तुतः यह संख्या भी बढ़ा- चढ़ा कर दिखाई जाती है । इस प्रकार इनकी संख्या 1 अरब 12 करोड़ बताई गई है । इसे दूसरे नंबर पर दिखाया गया है ।
अब हिन्दी का विश्लेषण करते हैं । भारत में हिन्दी मातृभाषा वाले 11 राज्यों की जनसंख्या है 65 करोड़ 58 लाख । ( इन्हें राजभाषा नियम के अनुसार “ क “ क्षेत्र माना जाता है ) यहाँ सभी हिन्दी जानते हैं , इसलिए “क” क्षेत्र में हिन्दी भाषियों की संख्या 65 करोड़ 58 लाख है , जबकि एथ्नोलोग हिन्दी के जानकारों की संख्या केवल 60 करोड़ दर्शाता है ।
जिन राज्यों में हिन्दी और उनके राज्य की भाषा मिलती जुलती है और वे प्रायः हिन्दी समझते हैं, इन्हें “ख” क्षेत्र कहा जाता इनकी राज्यों की कुल जन संख्या है 22 करोड़ 49 लाख । इनमे 90 प्रतिशत जनता हिन्दी जानती है इसलिए इस क्षेत्र में हिन्दी जाननेवाले 20 करोड़ 24 लाख हैं । तीसरा क्षेत्र है, हिंदीतर भाषी क्षेत्र जहां हिन्दी का प्रचलन कम है लेकिन हिन्दी के जानने वाले बड़ी संख्या में हैं । इस क्षेत्र को “ग “ क्षेत्र कहा जाता है , इन राज्यों की कुल जनसंख्या है 49 करोड़ 98 लाख और इनमे हिन्दी के जानकार हैं 29 करोड़ 78 लाख । इन तीनों क्षेत्रों को जोड़ कर भारत में हिन्दी जानने वालों की संख्या है : 65 करोड़ 55 लाख ( क क्षेत्र ) + 20 करोड़ 24 लाख ( ख क्षेत्र ) + 29 करोड़ 78 लाख ( ग क्षेत्र ) = 1 अरब 16 करोड़ । ( योग पूर्णांकित किया गया है )। भारत में हिन्दी जानने वालों की संख्या है 1 अरब 16 करोड़ ।
अब विश्व में इसकी गणना करते हैं । प्रत्येक उर्दू जानने वाला हिन्दी जानता है , इसलिए इनकी संख्या भी हिन्दी जाननेवालों में जोड़ी जाएगी । एथ्नोलोग के अनुसार विश्व में उर्दू जाननेवाले 17 करोड़ हैं । एक अरब 16 करोड़ में यह संख्या जोड़ देने पर हिन्दी जाननेवालों की संख्या हो जाती है 1 अरब 33 करोड़ । एथ्नोलोग के अनुसार विश्व के अन्य देशों में हिन्दी जाननेवालों की संख्या है 42 लाख ( मेरे शोध के अनुसार यह संख्या 2 करोड़ है लेकिन मैं एथ्नोलोग के आंकड़ों को लेकर ही चल रहा हूँ ताकि विश्व स्तर पर विवाद न हो )। भारत में अवैध आप्रवासी जो हिन्दी बोलते हैं उनकी संख्या है 1 करोड़ 60 लाख । इस प्रकार विश्व में हिन्दी भाषा के जानकार इस प्रकार हैं : 1 अरब 33 करोड़ ( भारत में ) + 42 लाख ( विश्व में ) + 1 करोड़ 60 लाख ( अवैध शरणार्थी ) = 1 अरब 35 करोड़ से अधिक । यह गणना बहुत ही कृपणता से की गए है जबकि अँग्रेजी और मंदारिन में बड़ी उदारता से आंकड़े दिखाये गए हैं ।( जिस सिद्धान्त से अँग्रेजी और मंदारिन के आंकड़े लिए गए हैं यदि वही तरीका हिन्दी के लिए भी अपनाएं तो विश्व में हिन्दी भाषियों की संख्या 1 अरब 45 करोड़ होगी अर्थात 1450 मिलियन )। कम से कम संख्या हिसाब में लेने पर भी हिन्दी जाननेवाले विश्व में 1 करोड़ 35 लाख अर्थात 1350 मिलियन से अधिक हैं । इसलिए विश्व में हिन्दी की रैंकिंग इस प्रकार है :
क्रम सं भाषा विश्व में बोलनेवालों की संख्या विश्व में स्थान /रैंकिंग
1 हिन्दी 1 अरब 35 करोड़ ( 1350 मिलियन ) प्रथम ( 1 )
2 अँग्रेजी 1 अरब 26 करोड़ (1268 मिलियन ) द्वितीय ( 2 )
3 मंदारिन 1 अरब 12 करोड़ ( 1168 मिलियन ) तृतीय ( 3 )
रैंकिंग की वर्तमान स्थिति :
मैंने अपनी शोध एथ्नोलोग कोइस अनुरोध के साथ भेजी थी कि वे हिन्दी को प्रथम स्थान पर दिखाएं । उन्होने सुझाव दिया था की हिन्दी में उर्दू भाषा को विलीन करने के लिए आइ एस ओ में परिवर्तन करने की आवश्यकता है । इसलिए मुझे लाइब्रेरी ऑफ कॉंग्रेस से संपर्क करके आगे की कार्रवाई करनी चाहिए । मैंने एथ्नोलोग को उत्तर भेजा कि उर्दू भाषा का अस्तित्व मिटाने कि आवश्यकता नहीं है, सिर्फ उर्दू जानने वालों कि गणना हिन्दी जानने वालों मे भी की जानी है जैसे कि अन्य भाषाओं के मामले मे किया जाता है । यह तर्क संगत है तथा एथ्नोलोग के मानदंडों के अनुरूप भी है । अतः यह मामला संपादक मण्डल के पास विचारार्थ है । शीघ्र ही वे अपने डाटा बेस में सुधार करके हिन्दी को प्रथम स्थान पर दर्शाने कि प्रक्रिया आरंभ करेंगे ।
कानूनी स्थिति :
हिन्दी आज कि तारीख में तथ्यतः ( D Facto ) विश्व में पहले स्थान पर है व एथ्नोलोग से रैंकिंग बदलने के बाद यह विधितः ( D Jure ) भी प्रथम स्थान पर होगी । यह मामला कानूनी विशेषज्ञ के पास विधिक राय के लिए भी भेजा गया था. कानूनी विशेषज्ञ ने भी कानूनी रूप से यह पुष्टि की है कि हिन्दी का विश्व में पहला स्थान है ।
प्रमाणीकरण :
यह शोध प्रमाणीकरण प्रक्रिया के 20 चरण सफलता पूर्वक पूर्ण कर चुकी है ।अतः यह शोध पूरी तरह प्रामाणिक हैं । राजभाषा विभाग , गृह मंत्रालय , भारत सरकार ने इस शोध को “फ़ैक्ट चेक” हेतु केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा को भेजा था । संस्थान ने इस शोध के तथ्यों की जांच के लिए विधिवत एक्सपर्ट नियुक्त किया था । एक्सपर्ट ने इस रिपोर्ट को प्रामाणिक मानते हुए इसकी प्रबल रूप में संपुष्टि की है तथा अपनी विस्तृत सकारात्मक रिपोर्ट दी है । भारत सहित विश्व के शीर्ष 172 भाषाविदों, विशेषज्ञों व विद्वानों ने इस रिपोर्ट की प्रामाणिकता की पुष्टि की है । संसदीय राजभाषा समिति के माननीय सदस्य राजभाषा निरीक्षणों के दौरान इस शोध की सगर्व चर्चा करते हैं । इस शोध की प्रामाणिकता को देखते हुए वित्त मंत्रालय , वित्तीय सेवाएँ विभाग , भारत सरकार ने बैंकों, वित्तीय संस्थाओं एवं बीमा कंपनियों द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में इस को प्रशिक्षण में अनिवार्य कर दिया है साथ ही उक्त सगठनों द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं में भी इस शोध को प्रकाशित करने के सरकारी आदेश जारी किए गए । यदि किसी भी पाठक को मूल शोध रिपोर्ट की आवश्यकता हो अथवा इस शोध के प्रमाणीकरण संबंधी किसी दस्तावेज़ या इनके प्रमाण देखने हों तो मुझे ई मेल करें , मैं आपका मेल मिलते ही आपको वांछित सूचनाएँ उपलब्ध करा दूँगा । सुधी पाठकों के सुझावों का स्वागत है ।
विनम्र अनुरोध : चूंकि यह रिपोर्ट प्रामाणिक है अतः इसका अधिक से अधिक प्रचार प्रसार करें , विशेष कर हिन्दी दिवस के अवसर पर संदेशों / पत्रिकाओं / व्याख्यानों में इस तथ्य को समाहित कर सकें तो मैं आभारी रहूँगा ।
लेखक का अति सूक्ष्म परिचय
डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल,का जन्म 3 मार्च 1956 को देहरादून में हुआ। डा नौटियाल, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से उप महाप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर देहरादून में निवास कर रहे हैं। डॉ नौटियाल ने अनेक राष्ट्रीय एवं विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन्हे “विश्व का सर्वाधिक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति” होने का गौरव प्राप्त है । इनका बायोडाटा (Resume) विश्व का सबसे वृहद एवं अद्वितीय है। यह 7 खंडों में है तथा 4200 से अधिक पृष्ठों में है। इसमें डॉ नौटियाल की 5030 उपलब्धियां दर्ज हैं । डॉ नौटियाल ने एम ए, ( हिन्दी), एम ए ( अँग्रेजी ) पी एच डी, डी लिट, एम बी ए, एल एल बी सहित 81 डिग्री/डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए हैं। इन्होंने 81 पुस्तकों के लेखन में योगदान दिया है, इनकी अधिकांश पुस्तकें विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक व संदर्भ पुस्तकों के रूप में चल रही हैं। इन्होंने हिंदी साहित्य को 1800 से अधिक प्रकाशित रचनाओं से समृद्ध किया है। इन्हें हिंदी भाषा और साहित्य के लिए 112 अवॉर्ड, सम्मान, और पुरस्कार मिल चुके हैं। इनके सेवा कार्य और शोध के लिए 225 प्रशंसा पत्र प्राप्त हुए हैं। राष्ट्र की 140 शीर्ष समितियों में इन्होंने प्रतिनिधित्व किया है। शोध के क्षेत्र में भी इनका योगदान उल्लेखनीय है,इन्होंने 165 शोध कार्यों को संपन्न किया है। इन्होंने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में 686 व्याख्यान दिए हैं। इन्होंने 150 प्रकार के बौद्धिक कार्यों में योगदान दिया है। इन्हें 73 प्रकार के व्यवसायों/ पदों पर कार्य करने का अनुभव है। इनके विवरण 911 से अधिक वेबसाइटों में उपलब्ध हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी इन्हे स्थान मिला है।
हिंदी विकिपीडिया,अंग्रेजी विकिटिया जैसे अन्य पोर्टलों पर इनके विवरण उपलब्ध हैं।
डॉ नौटियाल से मोबाइल 9900068722 पर अथवा dr.nautiyaljp@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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